Thursday 28 July 2011

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो,

हैं फूल रोकते, काँटे मुझे चलाते,
मरूस्थल, पहाड् चलने की चाह बढाते,
सच कहता हूँ मुश्किलें ना जब होती हैं,
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते,
मेरे संग चलने लगे हवायें जिससे,
तुम पथ के कण्-कण् को तूफ़ान करो ।

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो,

अंगार अधर पे धर मैं मुस्काया हूँ,
मैं मरघट से ज़िन्दगी बुला लाया हूँ,
हूँ आँख-मिचोली खेल चुका किस्मत से,
सौ बार मॄत्यु के गले चूम आया हूँ,
है नहीं मुझे स्वीकार दया अपनी भी,
तुम् मत मुझ पर कोई एहसान करो ।

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो,

श्रम के जल से ही राह सदा सिंचती है,
गति की मशाल आंधी में ही हँसती है,
शूलों से ही श्रंगार पथिक का होता,
मन्ज़िल की माँग लहू से ही सजती है,
पग में गति आती है चले चलने से,
तुम् पग पग पर जलती चट्टान धरो ।

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो,

फूलों से मग आसान नहीं होता है,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता है,
अवरोध नहीं तो सम्भव नहीं प्रगति भी,
है नाश जहाँ निर्माण वहीं होता है,
मैं बसा सकूँ नव स्वर्ग धरा पर जिससे,
तुम मेरी हर बस्ती वीरान करो ।

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो,

मैं पन्थी तूफ़ानों में राह बनाता,
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता -
वे मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर,
मैं तोड्कर् उसे लगाकर् बढ्ता जाता,
मैं ठुकरा सकूं तुम्हे भी हंसकर जिससे,
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो ।

मैं तूफ़ानों में चलने का आदी हूं
तुम मत मेरी मन्ज़िल आसान करो!!